10 दिशाएं - उर्ध्व,ईशान,पूर्व, आग्नेय,दक्षिण,नैऋत्य,पश्चिम,वायव्य
उत्तर और अधस्
हिन्दू धर्म में प्रत्येक दिशा के एक देवता नियुक्त किए गये हैं,जिन्हें दिग्पाल कहा जाता है अर्थात दिशाओं के पालनहार दिशाओं की रक्षा करने वाले
सृष्टि रचना काल प्रथम “स्वयंभू मन्वंतर” से पूर्व भगवान विष्णु के आदेशानुसार जिस समय भगवान ब्रह्मा सृष्टि करने के विचार में चिंतनरत थे उस समय उनके कान से दस कन्याएँ
(1) पूर्वा, (2)आग्नेयी, (3) दक्षिणा, (4) नैऋती, (5) पश्चिमा (6) वायवी, (7)उत्तरा, (8)ऐशानी,(9) ऊद्ध्व और
(10)अधस्
उत्पन्न हुईं जिनमें मुख्य 6 और 4 गौण थीं।
सभी कन्याओं ने ब्रह्मा जी का नमन कर उनसे रहने का स्थान और उपयुक्त पतियों की याचना की। ब्रह्मा जी ने कहा तुम सभी को जिन दिशाओं में जाने की इच्छा हो जा सकती हो। मैं तुम्हें तुम्हारे अनुरूप पति प्रदान करूँगा तत्पश्चात् उन कन्याओं ने एक-एक दिशा का चुनाव कर उस तरफ प्रस्थान किया।
१. पूर्वा: जो पूर्व दिशा कहलाई।
२. आग्नेयी: जो आग्नेय दिशा कहलाई |
३. दक्षिणा: जो दक्षिण दिशा कहलाई।
४. नैऋती: जो नैऋत्य दिशा कहलाई।
५. पश्चिमाः जो पश्चिम दिशा कहलाई।
६. वायवी: जो वायव्य दिशा कहलाई।
७. उत्तरा : जो उत्तर दिशा कहलाई।
८. ऐशानी: जो ईशान दिशा कहलाई।
९. उर्ध्व : जो उर्ध्व दिशा कहलाई।
१०. अधस्: जो अधस् दिशा कहलाई ।
इसके पश्चात् ब्रह्मा ने आठ दिक्पालों की सृष्टि की और अपनी कन्याओं को बुलाकर प्रत्येक दिक्पाल को एक एक कन्या प्रदान कर दी। २ दिशा का दायित्व उन्होंने दोनो ने स्वयं रख लिया, इसके पश्चात वे सभी दिक्पाल उन कन्याओं के साथ अपनी-अपनी दिशाओं में चले गए। एवं ऊर्ध्व या आकाश की ओर वे स्वयम् चले गए
इन दिक्पालों के नाम पुराणों में दिशाओं के क्रम से निम्नांकित है
१० दिशा के १० दिग्पाल : उर्ध्व के ब्रह्मा, ईशान के शिव व ईश, पूर्व के इंद्र, आग्नेय के अग्नि या वह्नि, दक्षिण के यम, नैऋत्य के नऋति, पश्चिम के वरुण, वायव्य के वायु और मारुत, उत्तर के कुबेर और अधो (नीचे की ओर) उन्होंने अनंत ( शेषनाग) को प्रतिष्ठित किया।
(कुछ पुराणों में इनके नाम में भिन्नता मिलती है )
किस दिशा का स्वामी कौन और उनके विभाग
पूर्व दिशा (इंद्र) : देवताओं में प्रमुख देवता, जो हमें समृद्धि और खुशियाँ प्रदान करते हैं।
पश्चिम दिशा (वरूण) : वर्षा के देवता। इनकी कृपा से वर्षा होती है, जिससे हमारे जीवन में सम्पन्नता आती है।
उत्तर दिशा (कुबेर) : समृद्धि के देवता का वास,जो हमें धन-धान्य से संपन्न करते हैं।
दक्षिण दिशा (यम): मृत्यु के देवता, जो हमें धार्मिक कार्यों की ओर प्रवृत्त करते हैं तथा हमारी सारी बुराइयों का नाश करते हैं।
उत्तर-पूर्व दिशा (ईशान कोण) का स्वामी ग्रह गुरु और देवता शिव हैं।
इस कोण में धर्म की स्थापना करनी चाहिए
दक्षिण-पूर्व दिशा (आग्नेय दिशा) : इस दिशा में अग्नि देवता निवास करते हैं, जो हमें अच्छा व्यक्तित्व प्रदान कर चरित्रवान बनाते हैं।
दक्षिण-पश्चिम (नैऋत्य दिशा) : इस दिशा में विराजमान देवता हमारे शत्रुओं का नाश कर हमें अभयदान प्रदान करते हैं।
उत्तर-पश्चिम दिशा (वायव्य दिशा) : इस दिशा में वायु देवता निवास करते हैं, जो हमें जीवनरक्षक प्राणवायु प्रदान करते हैं।
जय श्री हरि 🙏🏻
No comments:
Post a Comment