लिंग का अर्थ संस्कृत में चिन्ह, प्रतीक होता है।
जिस प्रकार पुरुषलिंग का अर्थ हुआ पुरुष का प्रतीक इसी प्रकार स्त्रीलिंग का अर्थ हुआ स्त्री का प्रतीक (अन्यथा स्त्री शब्द के साथ इसे जोड़ने का क्या औचित्य होता?) ठीक वैसे ही शिवलिंग का अर्थ है जो शिव का अंश या प्रतीक है उसे ही शिवलिंग कहा जाता है।
शिवलिंग का अर्थ लिंग या जननांग नहीं होता। दरअसल ये गलतफहमी, जानबूझकर कुछ विशिष्ट श्रेणी के इतिहासकारों और मूर्खों द्वारा भाषा के रूपांतरण ( literal translation) और हमारे पुरातन धर्म ग्रंथों और प्रतीकों की महानता को नष्ट कर दिए जानेब्रह्माण्ड में दो ही चीजें हैं : ऊर्जा और पदार्थ , हमारा शरीर पदार्थ से निर्मित है और आत्मा ऊर्जा है। इसी प्रकार शिव ‘पदार्थ’ और शक्ति ‘ऊर्जा’ का प्रतीक बन कर शिवलिंग कहलाते है।
ब्रह्मांड में उपस्थित समस्त ठोस तथा उर्जा शिवलिंग में निहित है.अर्थात् आकाश स्वयं लिंग है।शिवलिंग वातावरण सहित घूमती धरती (उसका आधार) तथा सारे अनन्त ब्रह्मांड (क्योंकि,ब्रह्मांड गतिमान है) का अक्ष/धुरी ही लिंग है अर्थात एक दिन सब उसी आकाश में समा जायेगा व फिर से एक नयी सरंचना बनेगी।)शून्य,आकाश,अनन्त,ब्रह्मांड और निराकार परमपुरुष का प्रतीक होने से इसे लिंग कहा गया अर्थात जिसका कोई अन्त नहीं है न ही शुरुआत
स्कन्दपुराण में कहा है -
“आकाशं लिंगमित्याहु: पृथ्वी तस्य पीठिका।
आलय: सर्व देवानां लयनार्लिंगमुच्यते ॥”वास्तव में शिवलिंग हमारे ब्रह्मांड की आकृति है. (The universe is a sign of Shiva Lingam.)
शिवलिंग भगवान शिव और देवी शक्ति (पार्वती) का आदि-अनादि एकल रूप है तथा पुरुष और प्रकृति की समानता का प्रतीक भी अर्थात इस संसार में न केवल पुरुष का और न केवल प्रकृति (स्त्री) का वर्चस्व है बल्कि दोनों का समान है।
शिवलिंग' को 3 रूपों में बांटा गया है
शैव संप्रदाय के अनुसार 'शिवलिंग''परशिव', 'पराशक्ति' और 'परमेश्वर' तीन रूपों में बंटा है। ऊपर वाले भाग को 'परशिव' और बीच वाले हिस्से को 'पराशक्ति' कहते हैं। इन्हीं से मिलकर 'परमेश्वर' का रूप सृजित होता है, जिसका संबंध आत्मा से है।
'शिव का प्रतीक' ‘पराशक्ति’ परिपूर्णता में भगवान शिव का ‘आकार’ है परन्तु ‘परशिव’ परिपूर्णता में वे ‘निराकार’ हैं
परमेश्वर का शाब्दिक अर्थ ‘परम ईश्वर’ है।संपूर्ण ब्रह्मांड की उत्पत्ति का मूल कारण परमेश्वर है
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