दो (2) का महत्व :
दो पक्ष- शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष
दो पूजा- वैदिकी और तांत्रिकी (पुराणोक्त)
दो अयन- उत्तरायन और दक्षिणायन
तीन (3) का महत्व :
त्रिदेव- ब्रह्मा,विष्णु, महेश
तीन देवियां- महासरस्वती,महा लक्ष्मी, महागौरी
तीन लोक- पृथ्वी, आकाश, पाताल
तीन गुण- सत्वगुण, रजोगुण, तमोगुण।
तीन स्तर- प्रारंभ, मध्य, अंत।
तीन रचनाए- देव, दानव, मानव।
तीन अवस्था- जाग्रत, स्वप्न और सुषुप्ति
तीन काल- भूत, भविष्य, वर्तमान।
तीन नाड़ी- इडा, पिंगला, सुषुम्ना।
तीन शक्ति- इच्छाशक्ति, ज्ञानशक्ति, क्रियाशक्ति
चार (4) का महत्व :
चार धाम- बद्रीनाथ, जगन्नाथ पुरी, रामेश्वरम्, द्वारका
चार मुनि- सनक, सनातन, सनंद, सनत्कुमार
चार वर्ण- ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र
चार निति- साम, दाम, दंड, भेद
चार वेद- सामवेद, ॠग्वेद, यजुर्वेद, अथर्ववेद।
चार युग- सतयुग, त्रेतायुग, द्वापर युग, कलयुग।
चार प्राणी- जलचर, थलचर, नभचर, उभयचर।
चार जीव- अण्डज, पिंडज, स्वेदज, उद्भिज।
चार वाणी- ओम्कार्, अकार्, उकार, मकार् या - (1) वैखारी वाणी (2) मध्यमा वाणी (3) पश्यंती वाणी और (4) परा वाणी।
चार आश्रम- ब्रह्मचर्य, ग्रहस्थ, वानप्रस्थ, सन्यास।
चार भोज्य- भक्ष्य, भोज्य, लेह्य, चोष्य।
चार पुरुषार्थ- धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष।
चार वाद्य- तत्, सुषिर, अवनद्व, घन।
पांच (5) का महत्व:
पांच तत्व- पृथ्वी, आकाश, अग्नि, जल, वायु।
पंचदेव - गणेश, दुर्गा, विष्णु, शंकर, सुर्य।
पांच ज्ञानेन्द्रियां- आंख, नाक, कान, जीभ, त्वचा।
पांच कर्म- रस, रुप, गंध, स्पर्श, ध्वनि।
पांच उंगलियां- अगूठा, तर्जनी, मध्यमा, अनामिका, कनिष्ठा
पाँच वटवृक्ष : सिद्धवट, अक्षयवट , बोधिवट , वंशीवट , साक्षीवट।
पाँच कन्या : अहिल्या, तारा, मंदोदरी, कुंती, द्रौपदी।
पांच पूजा उपचार- गंध, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य।
पांच अमृत- दूध, दही, घी, शहद, शक्कर।
पांच प्रेत- भूत, पिशाच, वैताल, कुष्मांड, ब्रह्मराक्षस।
पांच वायु- प्राण, अपान, व्यान, उदान, समान।
छः (6) का महत्व:
छ: ॠतु- शीत, ग्रीष्म, वर्षा, शरद, बसंत, शिशिर।
छ: ज्ञान के अंग- शिक्षा, कल्प, व्याकरण, निरुक्त, छन्द, ज्योतिष।
छ: कर्म- देवपूजा, गुरु उपासना, स्वाध्याय, संयम, तप, दान।
छ: दोष- काम, क्रोध, मद (घमंड), लोभ (लालच), मोह, आलस्य।
छः रस - मधुर (मीठा), लवण (नमकीन), अम्ल (खट्टा), कटु (कड़वा), तिक्त (तीखा) और कषाय (कसैला)।
सात (7) का महत्व:
सात छंद- गायत्री, उष्णिक, अनुष्टुप, वृहती, पंक्ति, त्रिष्टुप, जगती।
सात स्वर- सा, रे, ग, म, प, ध, नि।
सात सुर- षडज्, ॠषभ्, गांधार, मध्यम, पंचम, धैवत, निषाद
सात चक्र- सहस्त्रार, आज्ञा, विशुद्ध, अनाहत, मणिपुर, स्वाधिष्ठान, मूलाधार
सात वार- रवि, सोम, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि
सात मिट्टी- गौशाला, घुड़साल, हाथीसाल, राजद्वार, बाम्बी की मिट्टी, नदी संगम, तालाब
सात महाद्वीप- जम्बुद्वीप (एशिया), प्लक्षद्वीप, शाल्मलीद्वीप, कुशद्वीप
क्रौंचद्वीप, शाकद्वीप, पुष्करद्वीप
सात ॠषि- वशिष्ठ, कश्यप, अत्रि, जमदग्नि, गौतम, विश्वामित्र, भारद्वाज।
सात धातु (शारीरिक)- रस,रक्त, मांस, मेद, अस्थि, मज्जा, शुक्र।
सात पाताल- अतल, वितल, सुतल, तलातल, महातल, रसातल, पाताल।
सात पुरी- मथुरा, हरिद्वार, काशी, अयोध्या, उज्जैन, द्वारका, काञ्ची
आठ का महत्व
आठ प्रहर - दिन के चार प्रहर- पूर्वान्ह, मध्यान्ह, अपरान्ह और सायंकाल
रात चार प्रहर - प्रदोष, निशिथ, त्रियामा एवं उषा
आठ मातृका- ब्राह्मी, वैष्णवी,माहेश्वरी, कौमारी, ऐन्द्री,वाराही, नारसिंही,चामुंडा आठ लक्ष्मी-आदिलक्ष्मी, धनलक्ष्मी, धान्यलक्ष्मी, गजलक्ष्मी, संतानलक्ष्मी, वीरलक्ष्मी, विजयलक्ष्मी, विद्यालक्ष्मी
आठ वसु- अप (अह:/अयज), ध्रुव, सोम, धर, अनिल, अनल, प्रत्युष, प्रभास।
आठ सिद्धि- अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशित्व, वशित्व।
अष्टधातु- सोना, चांदी, तांबा, सीसा जस्ता, टिन, लोहा, पारा।
नौ (9) का महत्व:
नवदुर्गा- शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चन्द्रघंटा, कुष्मांडा, स्कन्दमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी, सिद्धिदात्री।
नवग्रह- सुर्य, चन्द्रमा, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि, राहु, केतु।
नवरत्न- माणिक्य, मुक्ताफल, विद्रुमः, मरातक, पुपराज, वज्र, नील, गोमेडा, वैद्योर्य:।
नवनिधि- पद्मनिधि, महापद्मनिधि, नीलनिधि, मुकुंदनिधि, नंदनिधि, मकरनिधि, कच्छपनिधि, शंखनिधि, खर्व/मिश्र निधि।
दस (10) का महत्व:
दस महाविद्या- काली, तारा, षोडशी, भुवनेश्वरी, भैरवी, छिन्नमस्तिका, धूमावती,बगलामुखी, मातंगी, कमला
दस दिशाएं- पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण, आग्नेय, नैॠत्य, वायव्य, ईशान, आकाश,
पाताल
दस दिक्पाल- इन्द्र, अग्नि, यमराज, नैॠिति, वरुण, वायुदेव, कुबेर, ईशान, ब्रह्मा, अनंत।
दस अवतार (विष्णुजी)- मत्स्य, कच्छप, वाराह, नृसिंह, वामन, परशुराम, राम, कृष्ण, बुद्ध, कल्कि।
दस सती- सावित्री, अनुसुइया, मंदोदरी, तुलसी, द्रौपदी, गांधारी, सीता, दमयन्ती, सुलक्षणा, अरुंधती
11 का महत्व- ग्यारह रुद्र या एकादश रुद्र शिवपुराण में एकादश रुद्र के नाम
कपाली, पिंगल, भीम, विरुपाक्ष, विलोहित, शास्ता, अजपाद, अहिर्बुध्न्य, शम्भु, चण्ड, और भव ।
बारह (12) आदित्य:- विवस्वान्, अर्यमा, पूषा, त्वष्टा, सविता, भग, धाता, विधाता, वरुण, मित्र, इंद्र और त्रिविक्रम (भगवान वामन)
12 राशियाँ भी होती हैं
12 स्वामी ग्रह भी होते हैं
बहुसम्यक् व्याख्यायितं भवत्या महोदये
पठतु संस्कृतम् वदतु संस्कृतम् जयतु भारतम्