*शब्द-मंत्र-जप :-*
*शब्द* जो हम बोलते है उसे शब्द कहते है
*मन्त्र* जब अलग अलग शब्दो का चयन करके उन्हें *क्रमबद्ध, लयबद्ध, तालबद्ध* कर दे और वो एक जगह विशेष पर झंकार पैदा करती हो तो मंत्र कहलाती है
*जप* जब एक मन्त्र *बारबार* दोहराया जाया वो जप कहलता है और बारबार दोहरने से मन्त्र *वृत्ताकार* हो जाता है और बार बार एक जगह पर आघात होता है
*मन्त्र के अंग -विनियोग*
मन्त्र के पाँच अंग होते है जिसे *विनियोग* कहते है ।
*ऋषि, छन्द, देवता, बीज और तत्व*।
इन्हीं से मिल कर मंत्र शक्ति पूर्ण बनती है।
*ऋषि* का अर्थ है *मार्ग दर्शक गुरू*, जिसने उस मंत्र में पारंगतता प्राप्त कर ली हो
*छन्द* का अर्थ है *लय*। यानि मन्त्र का उच्चारण किस लय स्वर के साथ करना है
*देवता* का अर्थ है *शक्ति* यानि मन्त्र किस शक्ति को आकर्षण या आत्मसात करेगी
*बीज* का अर्थ है - *उद्गम* स्थान , मंत्र कहाँ से उत्पन होता हैं
*तत्व* का अर्थ है - *लक्ष्य* स्थान , मंत्र कहा तक जाएगा
*जप लक्ष्य*
जब मंत्र *छंद(लय)* में उच्चारित होता है तो वो अपने *उदगम स्थान ( बीज )* से निकल कर , *ऋषि (मार्गदर्शक)* की दिशा अनुसार *तत्व (लक्ष्य )* की ओर *देवता ( शक्ति )* को ग्रहण के लिए प्रस्थान करता है , बार बार दोहराने से प्रत्येक मन्त्र *उद्गम से निकल कर लक्ष्य* तक जा कर *लक्ष्य से उद्गम स्थान* पर आता और आते समय *लक्ष्य के देवता गुण* को लाकर *साधक को उसकी शक्ति* से *ओतप्रोत* कर देता हैं और ऐसे *वृताकार* बन जाती है इसलिए ऋषियों ने एक स्थान पर शक्ति का प्रहार के में माध्यम से आत्मसात करने के लिए 24 हजार , सवा लाख , 24 लाख इत्यादि का अनुष्ठान बताया है ।
*गायत्री मंत्र विनियोग*
ऋषि *विश्वामित्र*
छन्द *गायत्री*
देवता *सविता*
बीज *व्यष्टि के सूक्ष्म शरीर के 24 उपचक्र*
तत्व *समष्टि का 24 शक्ति केन्द्र*
*गायत्री - सविता*
गायत्री मंत्र का देवता सविता हैं
इसलिए गायत्री मंत्र की साधना *सविता मण्डल* में ही हो सकती हैं
*सविता का स्वरूप*
जैसे हमारे तीन शरीर है वैसे सविता के तीन भाव हैं
*स्थुल शरीर - सूर्य* परमाणुओं से बना हुआ , प्रकाश देने वाला सूर्य
*सूक्ष्म शरीर -आदित्य* आदि काल से सभी को प्राण देंने वाला , देव आदित्य
*कारण शरीर -सविता* सबका जन्मदाता , चेतना देने वाला , सविता - महासूर्य ; ब्रह्म और शक्ति दोनो का समन्वय वाला ब्रह्मवर्चस
*चार वाणी*
*तत्त्वदर्शियों* ने चार वाणी बताई है
*वैखरी* - *स्थुल शरीर* से निकलने वाली वाणी इसके दो भाग है
*वैखरी* - जोर से बोलना
*उपांशु* - ऐसे बोलना जो सिर्फ हमें ही सुनाई दे
*मानस* - जो वाणी *मन* से बोली जाती है
*परा* - जो *प्राण* से बोली जाती है
*पश्यन्ति* - जो *भावना* से बोली जाती है
*गायत्री मन्त्र जप*
गायत्री मन्त्र का देवता सविता हैं
इसलिये *गायत्री मन्त्र जप सविता मण्डल* में ही हो सकती और की जाती हैं ।
जब हम *वैखरी और उपांशु* में जप करते हैं तो सविता का स्थुल स्वरूप *सूर्य की उपस्थिति तथा सविता का ध्यान* अनिवार्य मानी जाती हैं ।
और जब *मानसिक जप* करते हैं तब *सविता देवता का ध्यान* करते हुये करते हैं
*वैखरी-उपांशु जप* - सूर्य की उपस्थिति में , लगभग 2 घण्टे उगने/ढलने तक बनी रहती हैं लगभग 4AM से रात्रि 8PM
तथा
*मानसिक जप* - सविता देवता का ध्यान और सानिध्य में कभी भी की जा सकती हैं ...
जब हम *भौतिक / सांसारिक लाभ के लिये अनुष्ठान* करते हैं *माला जप उपांशु वाणी* के साथ करते हैं जो कि हमारे *स्थूल शरीर* से होता हैं इसलिए उस समय *सविता का स्थूल स्वरूप सूर्य की उपस्थिति अनिवार्य* होती हैं , यह अनुष्ठान की मर्यादा हैं
जब हम *रात्रि* में जप कर रहे तो हमे *मानसिक जप* करना होता हैं क्योंकि *स्थूल सूर्य* की उपस्थित *न* होने से *स्थूल शरीर वैखरी उपांशु में जप नही* कर सकते हैं
और मानसिक जप *सविता का कारण भाव सविता का ध्यान* करते हुऐ ही करना होता हैं , क्योंकि *गायत्री की साधना सविता मण्डल* में ही सकती हैं
*मानसिक जप कभी भी , कही भी , किसी भी परिस्थिति में कर सकते हैं ...*
*मानसिक जप*
- मन ही मन सविता देवता का ध्यान करते गायत्री जप करना - मानसिक जप हैं
-सविता देवता का ध्यान करते हुए मन ही मन गायत्री मन्त्र उच्चारण करते मन्त्र लेखन करना - मानसिक जप हैं
-सविता देवता का ध्यान और माँ आदिशक्ति से एकाकार होते हुए गायत्री चालीसा करना - मानसिक जप हैं
-मासिक काल /सूतक इत्यादि में मानसिक जप /मन्त्र लेखन / गायत्री चालीसा कर सकते हैं
*अनुष्ठान काल*
अनुष्ठान काल मे *नियमित अवधी* में *नियमित संख्या* के साथ , एक *लय ताल क्रम* में मन्त्र जप का विधान हैं जी की पुर्ण रूप *माला जप* से होती हैं इसलिए अनुष्ठान में अधिकांशतः माला से जप का विधान है
*तस्मै श्री गुरुवे नमः*
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