Monday, May 29, 2023

माँ कामाख्या देवी मंदिर का इतिहास

51 शक्तिपीठों में से एक कामाख्या शक्तिपीठ बहुत ही प्रसिद्ध और चमत्कारी है। कामाख्या देवी का मंदिर अघोरियों और तांत्रिकों का गढ़ माना जाता है। असम की राजधानी दिसपुर से लगभग 7 किलोमीटर दूर स्थित यह शक्तिपीठ नीलांचल पर्वत से 10 किलोमीटर दूर है। कामाख्या मंदिर सभी शक्तिपीठों का महापीठ माना जाता है। इस मंदिर में देवी दुर्गा या मां अम्बे की कोई मूर्ति या चित्र आपको दिखाई नहीं देगा। वल्कि मंदिर में एक कुंड बना है जो की हमेशा फूलों से ढ़का रहता है। इस कुंड से हमेशा ही जल निकलता रहतै है। चमत्कारों से भरे इस मंदिर में देवी की योनि की पूजा की जाती है और योनी भाग के यहां होने से माता यहां रजस्वला भी होती हैं। मंदिर से कई अन्य रौचक बातें जुड़ी है, आइए जनते हैं ...
मंदिर धर्म पुराणों के अनुसार माना जाता है कि इस शक्तिपीठ का नाम कामाख्या इसलिए पड़ा क्योंकि इस जगह भगवान शिव का मां सती के प्रति मोह भंग करने के लिए विष्णु भगवान ने अपने चक्र से माता सती के 51 भाग किए थे जहां पर यह भाग गिरे वहां पर माता का एक शक्तिपीठ बन गया और इस जगह माता की योनी गिरी थी, जोकी आज बहुत ही शक्तिशाली पीठ है। यहां वैसे तो सालभर ही भक्तों का तांता लगा रहता है लेकिन दुर्गा पूजा, पोहान बिया, दुर्गादेऊल, वसंती पूजा, मदानदेऊल, अम्बुवासी और मनासा पूजा पर इस मंदिर का अलग ही महत्व है जिसके कारण इन दिनों में लाखों की संख्या में भक्त यहां पहुचतें है।
🙏🏻🌹जय माँ कामाख्या देवी जी 🌹🙏🏻

Wednesday, May 24, 2023

!! हार्ट अटैक !!

!! हार्ट अटैक !!

हमारे  देश  भारत  में  3000 साल  पहले  एक  बहुत  बड़े ऋषि  हुये  थे.
उनका  नाम  था महाऋषि वागवट  जी
उन्होंने   एक   पुस्तक   लिखी थी
जिसका  नाम  है अष्टांग हृदयम
(Astang   hrudayam)
और  इस  पुस्तक  में  उन्होंने बीमारियों  को  ठीक  करने  के लिए 7000 सूत्र  लिखें   थे 
यह  उनमें  से  ही  एक  सूत्र है !
वागवट  जी  लिखते  हैं  कि कभी  भी  हृदय  को  घात  हो रहा  है मतलब  दिल  की  नलियों  मे blockage  होना  शुरू  हो  रहा   है !
तो  इसका  मतलब  है  कि रक्त  (blood)  में , acidity (अम्लता )  बढ़ी  हुई  है 
अम्लता  आप  समझते  हैं !
जिसको  अँग्रेजी  में  कहते  हैं acidity 
अम्लता  दो  तरह  की  होती है 
एक  होती  है   पेट  की अम्लता 
और  एक  होती  है  रक्त (blood)  की  अम्लता 
आपके  पेट  में  अम्लता  जब बढ़ती  है तो आप  कहेंगे
पेट  में जलन सी  हो  रही  है !
खट्टी  खट्टी  डकार  आ रही  हैं !
मुंह  से  पानी  निकल  रहा  है !
और  अगर  ये  अम्लता (acidity) और  बढ़  जाये !
तो  hyperacidity  होगी !
और  यही  पेट  की  अम्लता बढ़ते-बढ़ते  जब  रक्त  में  आती  है  तो  रक्त  अम्लता (blood  acidity)  होती है !
और  जब  blood  में  acidity बढ़ती  है  तो  ये  अम्लीय  रक्त (blood)  दिल  की  नलियों  में से  निकल  नहीं  पाती और  नलियों  में  blockage कर  देता  है !
तभी  heart  attack  होता है  इसके  बिना heart attack  नहीं  होता 
और  ये  आयुर्वेद  का  सबसे बढ़ा  सच  है  जिसको  कोई डाक्टर  आपको  बताता  नहीं 
क्योंकि  इसका  इलाज  सबसे सरल  है !
इलाज  क्या  है ?
वागवट  जी  लिखते  हैं  कि जब  रक्त  (blood)  में  अम्लता  (acidity)  बढ़  गई है तो  आप  ऐसी  चीजों  का उपयोग  करो  जो  क्षारीय  हैं 
आप  जानते  हैं  दो  तरह  की चीजें  होती  हैं 
अम्लीय  और  क्षारीय !
acidic  and  alkaline
अब  अम्ल  और  क्षार  को मिला  दो  तो  क्या  होता है ?
acid  and  alkaline  को मिला  दो  तो  क्या  होता है ?
‼️neutral‼️
होता  है  सब  जानते  हैं !
तो  वागवट  जी  लिखते  हैं कि  रक्त  की  अम्लता  बढ़ी हुई  है  तो  क्षारीय (alkaline) चीजें  खाओ !
तो  रक्त  की  अम्लता (acidity)  neutral  हो जाएगी !
और  रक्त  में  अम्लता neutral  हो  गई !
तो  heart  attack  की जिंदगी  मे  कभी  संभावना  ही नहीं !
ये  है  सारी  कहानी !
अब  आप  पूछेंगे कि  ऐसी कौन  सी  चीजें  हैं  जो  क्षारीय हैं  और  हम  खायें ?
आपके  रसोई  घर  में  ऐसी बहुत  सी  चीजें  है  जो  क्षारीय हैं जिन्हें  आप  खायें  तो  कभी heart attack  न  आए 
और  अगर  आ  गया  है 
तो  दुबारा  न  आए 
यह हम सब जानते हैं कि सबसे  ज्यादा  क्षारीय चीज क्या हैं और सब घर मे आसानी से उपलब्ध रहती हैं, तो वह  है लौकी 
जिसे  दुधी  भी  कहते  हैं 
English  में  इसे  कहते  हैं bottle  gourd
जिसे  आप  सब्जी  के  रूप  में खाते  हैं ! इससे  ज्यादा  कोई  क्षारीय चीज  ही  नहीं  है !
तो  आप  रोज  लौकी  का  रस निकाल-निकाल  कर  पियो या  कच्ची  लौकी  खायो !
वागवट  जी  कहते  हैं  रक्त की  अम्लता  कम  करने  की सबसे  ज्यादा  ताकत  लौकी  में ही  है तो  आप  लौकी  के  रस  का सेवन  करें !
कितना   सेवन करें ?
रोज  200  से  300  मिलीग्राम   पियो !
कब   पिये ?
सुबह  खाली  पेट (toilet जाने के बाद ) पी  सकते  हैं या  नाश्ते  के  आधे  घंटे  के बाद  पी  सकते  हैं 
इस  लौकी  के  रस  को  आप और  ज्यादा  क्षारीय  बना सकते  हैं 
इसमें 7 से 10 पत्ते तुलसी के डाल लो तुलसी  बहुत  क्षारीय  है इसके  साथ  आप  पुदीने  के  7  से 10  पत्ते  मिला  सकते  हैं पुदीना  भी बहुत  क्षारीय  है इसके  साथ  आप  काला नमक  या  सेंधा  नमक  जरूर डाले 
ये भी बहुत क्षारीय है 
लेकिन  याद  रखें
नमक काला या सेंधा ही डाले वो  दूसरा  आयोडीन  युक्त नमक  कभी  न  डाले ये  आओडीन  युक्त  नमक अम्लीय  है 
तो  आप  इस  लौकी  के जूस  का  सेवन  जरूर  करें 
2  से  3  महीने  की  अवधि में आपकी  सारी  heart  की blockage  को  ठीक  कर देगा 
21  वें  दिन  ही  आपको  बहुत ज्यादा  असर  दिखना  शुरू  हो जाएगा 
कोई  आपरेशन  की  आपको जरूरत  नहीं  पड़ेगी 
घर  में  ही  हमारे  भारत  के आयुर्वेद  से  इसका  इलाज  हो जाएगा 
और  आपका  अनमोल  शरीर और  लाखों  रुपए  आपरेशन के  बच  जाएँगे 
आपने  पूरी  पोस्ट  पढ़ी , आपका   बहुत   बहुत धन्यवाद !!
🙏सनातन धर्म सर्वश्रेष्ठ है 🙏

Monday, December 19, 2022

Know Why should we do Half Pradakshina ( Ardh Parikrama ) of Shivling 🔱🙏एका चण्डा रवेः सप्त तिस्त्रः कार्या विनायके | हरेश्चतस्त्रः कर्तव्याः शिवस्यार्धप्रदक्षिणा || It means, that a devotee should perform one pradakshina for Maa Durga, seven for Bhagwan Surya

Three for Shree Ganesh Ji, Four for Bhagwan Vishnu But for Bhagwan Shiv one should perform only half pradakshina.

According to Shastras and Shivpuran, only half-parikrama must be carried out by the devotees around the Shiv Linga. This practice is justified by explaining that,Shiv is both 'Aadi' & 'Anant'. Aadi means first or beginning and Anant means everlasting. 

Thus, the divine and endless energy (Shakti) flowing from him is represented in the form of ‘Nirmili’ which is the narrow outlet (Gomukhi) from where the milk and  water used for ‘Abhishek’ flows out.

When a devotee does the Pradakshina he should never cross the Shivling's Abhishek water passage which goes through the floor where the pradakshina is performed.

The reason not to cross the water passage is that the Abhishek’ water is considered very sacred and should not be crossed or over-stepped by the devotees.

It's said that Shiva's Shakti is so fierce that no one could ever interfere or come in the line of it. Whoever does it has to face the wrath of Bhagwan Shiv. Hence, the devotee should perform a clockwise pradakshina until he reaches the water passage and then he/she should go for an anticlockwise pradakshina until he reaches the other point of the water passage. 

This way Bhagwan Shiv's one circumambulation is completed.

Saturday, November 5, 2022

चौरासी लाख (८४००००० ) योनियों का रहस्य!!


हिन्दू धर्म में पुराणों में वर्णित ८४००००० योनियों के बारे में आपने कभी ना कभी अवश्य सुना होगा। हम जिस मनुष्य योनि में जी रहे हैं वो भी उन चौरासी लाख योनियों में से एक है। 

गरुड़ पुराण में योनियों का विस्तार से वर्णन दिया गया है।
एक जीव, जिसे हम आत्मा भी कहते हैं, इन ८४००००० योनियों में भटकती रहती है। अर्थात मृत्यु के पश्चात वो इन्ही चौरासी लाख योनियों में से किसी एक में जन्म लेती है।

ये तो हम सब जानते हैं कि आत्मा अजर एवं अमर होती है इसी कारण मृत्यु के पश्चात वो एक दूसरे योनि में दूसरा शरीर धारण करती है।आप सोचेंगे यहाँ "योनि" का अर्थ क्या है? 
अगर आसान भाषा में समझा जाये तो योनि का अर्थ है प्रजाति (नस्ल), जिसे अंग्रेजी में हम Species कहते हैं। 

अर्थात इस विश्व में जितने भी प्रकार की प्रजातियाँ है उसे ही ‘योनि’ कहा जाता है। इन प्रजातियाँ में ना केवल मनुष्य और पशु आते हैं,
बल्कि पेड़-पौधे, वनस्पतियाँ, जीवाणु-विषाणु इत्यादि की गणना भी उन्ही ८४००००० योनियों में की जाती है। 

आज का विज्ञान बहुत विकसित हो गया है और दुनिया भर के जीव वैज्ञानिक वर्षों की शोधों के बाद इस निष्कर्ष पर पहुँचे हैं कि इस पृथ्वी पर आज लगभग ८७००००० (87 lakh) प्रकार के जीव-जंतुएवं वनस्पतियाँ पाई जाती है

अब आप सिर्फ ये अनुमान लगाइये कि हमारे हिन्दू धर्म में ज्ञान-विज्ञान कितना उन्नत रहा होगा कि हमारे ऋषि-मुनियों ने आज से हजारों वर्षों पहले अपने ज्ञान के बल पर ये बता दिया था कि ८४००००० योनियाँ है जो कि आज की उन्नत तकनीक द्वारा कीगयी गणना के बहुत निकट हैजो भी जीव इस जन्म मरण के चक्र से छूट जाता है, उसे आगे किसी अन्य योनि में जन्म लेने की आवश्यकता नहीं होती है, उसे ही हम "मोक्ष" ( जन्म-मरण के चक्र से मुक्ति) की प्राप्ति करना कहते है। 

पुराणों में ८४००००० योनियों का गणनाक्रम दिया गया है पद्मपुराण के ७८/५ वें सर्ग में कहा गया है:“जलज नव लक्षाणी, स्थावर लक्ष विम्शति, कृमयो रूद्र संख्यक:।
पक्षिणाम दश लक्षणं, त्रिन्शल लक्षानी पशव:, चतुर लक्षाणी मानव:।।”

अर्थात,
जलचर जीव: ९००००० (नौ लाख)
वृक्ष-पौधे : २०००००० (बीस लाख)
कीट (क्षुद्रजीव): ११००००० (ग्यारह लाख)
पक्षी: १०००००० (दस लाख)
पशु: ३०००००० (तीस लाख)देवता-दैत्य-दानव-मनुष्य आदि : ४००००० (चार लाख)
इस प्रकार ९००००० + २०००००० + ११००००० + १०००००० + ३०००००० + ४००००० = कुल योनियां ८४००००० योनियाँ होती है।

84 लाख योनियों को आचार्यों द्वारा 2 भागों में बांटा गया है। इसमें से पहला (१) योनिज तथा दूसरा (२) आयोनिज हैमतलब 2 जीवों के संयोग से उत्पन्न प्राणी को ‘योनिज’ कहा जाता है।
और जो अपने आप ही अमीबा की तरह विकसित होते हैं। उन्हें ‘आयोनिज’ कहा जाता है। 
इसके अलावा मूल रूप से प्राणियों को 3 भागों में बांटा जाता है, जो नीचे दिए गए हैं
• जलचर:–जल में रहने वाले सारे प्राणी।
• थलचर :-पृथ्वी पर रहने वाले सभी प्राणी।
• नभचर :- आकाश में विहार करने वाले सारे प्राणी।

84 लाख योनियों को नीचे दिए गए 4 वर्गों में बांटा जाता है।
१- जरायुज :- माता के गर्भ से जन्म लेने वाले मनुष्य, पशु को जरायुज कहा जाता है ।
२- अंडज :- अंडों से उत्पन्न होने वाले प्राणी  को अंडज कहा जाता है
३- स्वदेज :- मल-मूत्र, पसीने आदि से उत्पन्न क्षुद्र जंतु को स्वेदज  कहा जाता है।
४- उदि्भज :- पृथ्वी से उत्पन्न प्राणी को उदि्भज कहा‘प्राचीन भारत में विज्ञान और शिल्प‘ ग्रंथ में शरीर की रचना के आधार पर प्राणियों का वर्गीकरण किया जाता है, जो कि नीचे दिए गए अनुसार है- 

• एक शफ (एक खुर वाले पशु):- खर (गधा), अश्व (घोड़ा), अश्वतर (खच्चर), गौर (एक प्रकार की भैंस), हिरण को शामिल किया जाता है।
• विशफ (दो खुर वाले पशु):- गाय, बकरी, भैंस, कृष्ण मृग आदि शामिल है।
• पंच अंगुल (पांच अंगुली) नखों (पंजों) वाले पशु:-सिंह, व्याघ्र, गज, भालू, श्वान (कुत्ता), श्रृंगाल आदि को शामिल किया जाता है।

मनुष्य योनि को मोक्ष की प्राप्ति के लिए सर्वाधिक आदर्श योनि माना गया है क्यूंकिमोक्ष के लिए जीव में जिस ‘चेतना’ की आवश्यकता होती है वो हम मनुष्यों में सबसे अधिक पायी जाती है। 

रामायण और हरिवंश पुराण में कहा गया है कि कलियुग में मोक्ष की प्राप्ति का सबसे सरल साधन "राम-नाम" है।

हालाँकि आचार्यों ने कहा है की ये अनिवार्य नहीं है कि केवलमनुष्यों को ही मोक्ष की प्राप्ति होगी, 
अन्य जंतुओं अथवा वनस्पतियों को नहीं। 

इस बात के कई उदाहरण हमें अपने वेदों और पुराणों में मिलते हैं कि जंतुओं ने भी सीधे अपनी योनि से मोक्ष की प्राप्ति की। महाभारत में पांडवों के महाप्रयाण के समय एक कुत्ते का वर्णन आता है जिसे उनके साथ ही मोक्ष की प्राप्ति हुई थी, जो वास्तव में ‘धर्मराज’ थे

विष्णु एवं गरुड़ पुराण में एक गज-ग्राह का वर्णन आता है जिन्हे भगवान विष्णु के कारण मोक्ष की प्राप्ति हुई।वो ग्राह पूर्व जन्म में गन्धर्व और गज भक्त राजा थे किन्तु कर्मफल के कारण अगले जन्म में पशुयोनि में जन्मे ऐसे ही एक गज का वर्णन गजानन की कथा में है जिसके सर को श्रीगणेश के सर के स्थान पर लगाया गया था और भगवान शिव की कृपा से उसे मोक्ष की प्राप्ति हुई। महाभारत की कृष्ण लीला में श्रीकृष्ण ने अपनी बाल्यावस्था में खेल-खेल में "यमल" एवं "अर्जुन" नमक दो वृक्षों को उखाड़ दिया था।वो यमलार्जुन वास्तव में पिछले जन्म में यक्ष थे जिन्हे वृक्ष योनि में जन्म लेने का श्राप मिला था। 

अर्थात, जीव चाहे किसी भी योनि में हो, अपने पुण्य कर्मों और सच्ची भक्ति से वो मोक्ष को प्राप्त कर सकता है।हमें इस बात का गौरवान्वित होना चाहिये कि जिस को सिद्ध करने में आधुनिक/पाश्चात्य विज्ञान को हजारों वर्षों का समय लग गया, उसे हमारे विद्वान ऋषि-मुनियों ने सहस्त्रों वर्षों पूर्व ही सिद्ध कर दिखाया था। 
🙏🏻🚩

Thursday, November 3, 2022

किसके पास था कौन-सा दिव्य धनुष 🙏🏻🏹

किसके पास था कौन-सा दिव्य धनुष 🙏🏻🏹
1 भगवान शिव– पिनाक धनुष शिव जी को अर्पित किया गया था. पिनाक को अजगव भी कहा गया है. शिव जी के पास और भी कई धनुष थे. त्रिपुरांतक धनुष से उन्होंने मयासुर द्वारा बनाए त्रिपुर को नष्ट किया था. शिव जी के पास रुद्र नामक एक और धनुष का उल्लेख भी मिलता है जिसे बाद में भगवान बलराम ने प्राप्त किया था ।

2 भगवान विष्णु– शांर्डग्य (शारंग) धनुष विष्णु जी को अर्पित किया गया था जिसे उन्होंने धारण किया. इसे शर्ख के नाम से भी जाना गया. यह धनुष भगवान परशुराम और योगेश्वर श्री कृष्ण ने प्राप्त किया था ।

3 भगवान ब्रह्मा– भगवान ब्रह्मा को गांडिव धनुष अर्पित किया गया था. जिसे अग्निदेव, दैत्यराज वृषपर्वा और अंत में सव्यसांची अर्जुन ने प्राप्त किया।

4 परशुराम – परशुराम जी के पास अनेक धनुष थे. उन्होंने अपने गुरु महादेव से पिनाक, भगवान विष्णु से शांर्डग्य (शारंग)और देवराज इंद्र से विजय नामक धनुष प्राप्त किया था. यह विजय धनुष उन्होंने अपने शिष्य कर्ण को दिया था।

5:- प्रभु श्री राम:- भगवान राम जिस धनुष को धारण करते थे उसका नाम कोदण्ड था. रामचरित मानस में प्रभु के धनुष को सारंग भी कहा गया है, परंतु वह धनुष शब्द कापर्यायवाची शब्द सारंग है ना कि विष्णु जी का धनुष शांर्डग्य ।

6:- लंकापति रावण:- रावण के पास पौलत्स्य नामक धनुष था. जिसे द्वापर युग में घटोत्कच ने प्राप्त किया था. एक समय पर रावण ने शिव जी से पिनाक भी प्राप्त किया था, परंतु उसे धारण नहीं कर पाया.7 श्री कृष्ण– योगेश्वर श्री कृष्ण का मुख्य आयुध सुदर्शन चक्र था परंतु उन्होंने भी शांर्डग्य (शारंग) धनुष को धारण किया था ।

8 बलराम– बल दऊ के धनुष का नाम रुद्र था जो उन्होने भगवान शिव से प्राप्त किया था ।

9:- भगवान कार्तिकेय :- इन्होंने अपने पिता भगवान शिव के धनुष पिनाक को धारण किया था।

10:- देवराज इंद्र:- इंद्रदेव ने विजय नामक धनुष को धारण किया जिसे उन्होंने भगवान परशुराम जी को दे दिया ।

11:- कामदेव:- कामदेव ने ईख (गन्ने) की छड़ी पर मधुमक्खी के तार से बनी प्रत्यंचा से तैय्यार पुष्पधनु नामक धनुष को धारण किया था ।

12:- युधिष्ठिर :- युधिष्ठिर जी ने महेंद्र नामक धनुष को धारण किया था ।

13:- भीम:- भीमसेन ने वायुदेव से प्राप्त वायव्य धनुष को धारण किया था ।

14: कौन्तेय अर्जुन– अर्जुन ने ब्रह्मा जी के धनुष गांडिव को धारण किया था. जिसे उसने खांडवप्रस्थ में मयदानव से प्राप्त किया था ।

15: नकुल– नकुल ने भगवान विष्णु से प्राप्त वैष्णव धनुष को धारण किया था ।

16: सहदेव– सहदेव ने अश्विनी कुमारों से प्राप्त अश्विनी नामक धनुष को धारण किया था ।

17 कर्ण– कर्ण ने अपने गुरु भगवान परशुराम से देवराज इंद्र का विजय धनुष प्राप्त किया था. इंद्रदेव की उपासना कर कर्ण ने अमोघास्त्र भी प्राप्त किया था ।

18 अभिमन्यु– अभिमन्यु ने अपने गुरु और मामा भगवान बलराम से भगवान शिव का धनुष रुद्र प्राप्त किया था ।

19 घटोत्कच– घटोत्कच ने लंकापति रावण का धनुष पौलत्स्य प्राप्त किया ।

(उप पाण्डव:- पाण्डवों और द्रौपदी से उत्पन्न पुत्रों को उप पाण्डव कहा गया)

20 प्रतिविंध्य– युधिष्ठिर के इस पुत्र ने रौद्र नामक धनुष का प्रयोग किया ।

21- सूतसोम– भीमसेन के इस पुत्र ने आग्नेय नामक धनुष प्राप्त किया ।

22 श्रुतकर्मा– अर्जुन के इस पुत्र ने कावेरी धनुष का प्रयोग किया ।
 
23 शतनिक– नकुल के इस पुत्र को यम्या धनुष प्राप्त हुआ ।

24 श्रुतसेन– सहदेव के पुत्र ने गिरिषा धनुष का प्रयोग किया ।

कुरुवंश के कुल गुरु
25 द्रोणाचार्य– आचार्य द्रोण ने महर्षि अंगिरस से प्राप्त आंगिरस धनुष प्रयोग किया ।

Sunday, October 9, 2022

जानिए हिंदू धर्म में “संख्या” का महत्व एवं उनसे जुड़ी धार्मिक जानकारीहिंदू धर्म में 1 से लेकर 12 की संख्या प्रमुख देवी-देवताओं से लेकर, धर्म शास्त्र समस्त जानकारी हर संख्या में समाहित है।


एक ब्रह्म - "एको ब्रह्म द्वितीयो नास्ति"

दो (2) का महत्व :

दो पक्ष- शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष
दो पूजा- वैदिकी और तांत्रिकी (पुराणोक्त)
दो अयन- उत्तरायन और दक्षिणायन

तीन (3) का महत्व :

त्रिदेव- ब्रह्मा,विष्णु, महेश
तीन देवियां- महासरस्वती,महा लक्ष्मी, महागौरी
तीन लोक- पृथ्वी, आकाश, पाताल 
तीन गुण- सत्वगुण, रजोगुण, तमोगुण।
तीन स्तर- प्रारंभ, मध्य, अंत।
तीन रचनाए- देव, दानव, मानव।
तीन अवस्था- जाग्रत, स्वप्न और सुषुप्ति
तीन काल- भूत, भविष्य, वर्तमान।
तीन नाड़ी- इडा, पिंगला, सुषुम्ना।
तीन शक्ति- इच्छाशक्ति, ज्ञानशक्ति, क्रियाशक्ति

चार (4) का महत्व :

चार धाम- बद्रीनाथ, जगन्नाथ पुरी, रामेश्वरम्, द्वारका
चार मुनि- सनक, सनातन, सनंद, सनत्कुमार
चार वर्ण- ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र
चार निति- साम, दाम, दंड, भेद
चार वेद- सामवेद, ॠग्वेद, यजुर्वेद, अथर्ववेद।
चार युग- सतयुग, त्रेतायुग, द्वापर युग, कलयुग।
चार प्राणी- जलचर, थलचर, नभचर, उभयचर।
चार जीव- अण्डज, पिंडज, स्वेदज, उद्भिज।
चार वाणी- ओम्कार्, अकार्, उकार, मकार् या - (1) वैखारी वाणी (2) मध्यमा वाणी (3) पश्यंती वाणी और (4) परा वाणी।
चार आश्रम- ब्रह्मचर्य, ग्रहस्थ, वानप्रस्थ, सन्यास।
चार भोज्य- भक्ष्य, भोज्य, लेह्य, चोष्य।
चार पुरुषार्थ- धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष।
चार वाद्य- तत्, सुषिर, अवनद्व, घन।

पांच (5) का महत्व:

पांच तत्व- पृथ्वी, आकाश, अग्नि, जल, वायु।
पंचदेव - गणेश, दुर्गा, विष्णु, शंकर, सुर्य।
पांच ज्ञानेन्द्रियां- आंख, नाक, कान, जीभ, त्वचा।
पांच कर्म- रस, रुप, गंध, स्पर्श, ध्वनि।
पांच उंगलियां- अगूठा, तर्जनी, मध्यमा, अनामिका, कनिष्ठा

पाँच वटवृक्ष : सिद्धवट, अक्षयवट , बोधिवट , वंशीवट , साक्षीवट।
पाँच कन्या : अहिल्या, तारा, मंदोदरी, कुंती, द्रौपदी।

पांच पूजा उपचार- गंध, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य।
पांच अमृत- दूध, दही, घी, शहद, शक्कर।

पांच प्रेत- भूत, पिशाच, वैताल, कुष्मांड, ब्रह्मराक्षस।
पांच वायु- प्राण, अपान, व्यान, उदान, समान।
छः (6) का महत्व: 

छ: ॠतु- शीत, ग्रीष्म, वर्षा, शरद, बसंत, शिशिर।
छ: ज्ञान के अंग- शिक्षा, कल्प, व्याकरण, निरुक्त, छन्द, ज्योतिष।
छ: कर्म- देवपूजा, गुरु उपासना, स्वाध्याय, संयम, तप, दान।

छ: दोष- काम, क्रोध, मद (घमंड), लोभ (लालच), मोह, आलस्य।
छः रस - मधुर (मीठा), लवण (नमकीन), अम्ल (खट्टा), कटु (कड़वा), तिक्त (तीखा) और कषाय (कसैला)।

सात (7) का महत्व:

सात छंद- गायत्री, उष्णिक, अनुष्टुप, वृहती, पंक्ति, त्रिष्टुप, जगती।
सात स्वर- सा, रे, ग, म, प, ध, नि।

सात सुर- षडज्, ॠषभ्, गांधार, मध्यम, पंचम, धैवत, निषाद
सात चक्र- सहस्त्रार, आज्ञा, विशुद्ध, अनाहत, मणिपुर, स्वाधिष्ठान, मूलाधार

सात वार- रवि, सोम, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि
सात मिट्टी- गौशाला, घुड़साल, हाथीसाल, राजद्वार, बाम्बी की मिट्टी, नदी संगम, तालाब

सात महाद्वीप- जम्बुद्वीप (एशिया), प्लक्षद्वीप, शाल्मलीद्वीप, कुशद्वीप
क्रौंचद्वीप, शाकद्वीप, पुष्करद्वीप

सात ॠषि- वशिष्ठ, कश्यप, अत्रि, जमदग्नि, गौतम, विश्वामित्र, भारद्वाज।

सात धातु (शारीरिक)- रस,रक्‍त, मांस, मेद, अस्थि, मज्‍जा, शुक्र।

सात पाताल- अतल, वितल, सुतल, तलातल, महातल, रसातल, पाताल।
सात पुरी- मथुरा, हरिद्वार, काशी, अयोध्या, उज्जैन, द्वारका, काञ्ची

आठ का महत्व

आठ प्रहर - दिन के चार प्रहर- पूर्वान्ह, मध्यान्ह, अपरान्ह और सायंकाल
रात चार प्रहर - प्रदोष, निशिथ, त्रियामा एवं उषा 

आठ मातृका- ब्राह्मी, वैष्णवी,माहेश्वरी, कौमारी, ऐन्द्री,वाराही, नारसिंही,चामुंडा आठ लक्ष्मी-आदिलक्ष्मी, धनलक्ष्मी, धान्यलक्ष्मी, गजलक्ष्मी, संतानलक्ष्मी, वीरलक्ष्मी, विजयलक्ष्मी, विद्यालक्ष्मी

आठ वसु- अप (अह:/अयज), ध्रुव, सोम, धर, अनिल, अनल, प्रत्युष, प्रभास।

आठ सिद्धि- अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशित्व, वशित्व।
अष्टधातु- सोना, चांदी, तांबा, सीसा जस्ता, टिन, लोहा, पारा।

नौ (9) का महत्व:

नवदुर्गा- शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चन्द्रघंटा, कुष्मांडा, स्कन्दमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी, सिद्धिदात्री।

नवग्रह- सुर्य, चन्द्रमा, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि, राहु, केतु।
नवरत्न- माणिक्य, मुक्ताफल, विद्रुमः, मरातक, पुपराज, वज्र, नील, गोमेडा, वैद्योर्य:।

नवनिधि- पद्मनिधि, महापद्मनिधि, नीलनिधि, मुकुंदनिधि, नंदनिधि, मकरनिधि, कच्छपनिधि, शंखनिधि, खर्व/मिश्र निधि।

दस (10) का महत्व:

दस महाविद्या- काली, तारा, षोडशी, भुवनेश्वरी, भैरवी, छिन्नमस्तिका, धूमावती,बगलामुखी, मातंगी, कमला 

दस दिशाएं- पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण, आग्नेय, नैॠत्य, वायव्य, ईशान, आकाश,
पाताल

दस दिक्पाल- इन्द्र, अग्नि, यमराज, नैॠिति, वरुण, वायुदेव, कुबेर, ईशान, ब्रह्मा, अनंत।

दस अवतार (विष्णुजी)- मत्स्य, कच्छप, वाराह, नृसिंह, वामन, परशुराम, राम, कृष्ण, बुद्ध, कल्कि।

दस सती- सावित्री, अनुसुइया, मंदोदरी, तुलसी, द्रौपदी, गांधारी, सीता, दमयन्ती, सुलक्षणा, अरुंधती

11 का महत्व- ग्यारह रुद्र या एकादश रुद्र शिवपुराण में एकादश रुद्र के नाम
कपाली, पिंगल, भीम, विरुपाक्ष, विलोहित, शास्ता, अजपाद, अहिर्बुध्न्य, शम्भु, चण्ड, और भव । 
बारह (12) आदित्य:- विवस्वान्, अर्यमा, पूषा, त्वष्टा, सविता, भग, धाता, विधाता, वरुण, मित्र, इंद्र और त्रिविक्रम (भगवान वामन)
12 राशियाँ भी होती हैं
12 स्वामी ग्रह भी होते हैं
बहुसम्यक् व्याख्यायितं भवत्या महोदये 
पठतु संस्कृतम् वदतु संस्कृतम् जयतु भारतम्

Tuesday, October 4, 2022

तेजोमहालय।

तेजोमहालय।
इतिहास में पढ़ाया जाता है कि ताजमहल का निर्माण कार्य 1632 में शुरू और लगभग 1653 में इसका निर्माण कार्य पूर्ण हुआ। अब सोचिए कि जब मुमताज का इंतकाल 1631 में हुआ तो फिर कैसे उन्हें 1631 में ही ताजमहल में दफना दिया गया, जबकि ताजमहल तो 1632 में बनना शुरू हुआ था।
यह सब मनगढ़ंत बातें हैं जो अंग्रेज और मुस्लिम इतिहासकारों ने 18वीं सदी में लिखी।

दरअसल 1632 में हिन्दू मंदिर को इस्लामिक लुक देने का कार्य शुरू हुआ। 1649 में इसका मुख्य द्वार बना जिस पर कुरान की आयतें तराशी गईं। इस मुख्य द्वार के ऊपर हिन्दू शैली का छोटे गुम्बद के आकार का मंडप है और अत्यंत भव्य प्रतीत होता है। आस पास मीनारें खड़ी की गई और फिर सामने स्थित फव्वारे को फिर से बनाया गया।

जे ए माॅण्डेलस्लो ने मुमताज की मृत्यु के 7 वर्ष पश्चात Voyages and Travels into the East Indies नाम से निजी पर्यटन के संस्मरणों में आगरे का तो उल्लेख किया गया है किंतु ताजमहल के निर्माण का कोई उल्लेख नहीं किया। 

टाॅम्हरनिए के कथन के अनुसार 20 हजार मजदूर यदि 22 वर्ष तक ताजमहल का निर्माण करते रहते तो माॅण्डेलस्लो भी उस विशाल निर्माण कार्य का उल्लेख अवश्य करता।
ताज के नदी के तरफ के दरवाजे के लकड़ी के एक टुकड़े की एक अमेरिकन प्रयोगशाला में की गई कार्बन जांच से पता चला है कि लकड़ी का वो टुकड़ा शाहजहां के काल से 300 वर्ष पहले का है, क्योंकि ताज के दरवाजों को 11वीं सदी से ही मुस्लिम आक्रामकों द्वारा कई बार तोड़कर खोला गया है और फिर से बंद करने के लिए दूसरे दरवाजे भी लगाए गए हैं।
ताज और भी पुराना हो सकता है। असल में ताज को सन् 1115 में अर्थात शाहजहां के समय से लगभग 500 वर्ष पूर्व बनवाया गया था।

ताजमहल के गुम्बद पर जो अष्टधातु का कलश खड़ा है वह त्रिशूल आकार का पूर्ण कुंभ है।
उसके मध्य दंड के शिखर पर नारियल की आकृति बनी है।
नारियल के तले दो झुके हुए आम के पत्ते और उसके नीचे कलश दर्शाया गया है। उस चंद्राकार के दो नोक और उनके बीचोबीच नारियल का शिखर मिलाकर त्रिशूल का आकार बना है।
हिन्दू और बौद्ध मंदिरों पर ऐसे ही कलश बने होते हैं। कब्र के ऊपर गुंबद के मध्य से अष्टधातु की एक जंजीर लटक रही है। शिवलिंग पर जल सिंचन करने वाला सुवर्ण कलश इसी जंजीर पर टंगा रहता था।उसे निकालकर जब शाहजहां के खजाने में जमा करा दिया गया तो वह जंजीर लटकी रह गई।
उस पर लाॅर्ड कर्जन ने एक दीप लटकवा दिया, जो आज भी है।

कब्रगाह को महल क्यों कहा गया? मकबरे को महल क्यों कहा गया? क्या किसी ने इस पर कभी सोचा, क्योंकि पहले से ही निर्मित एक महल को कब्रगाह में बदल दिया गया। कब्रगाह में बदलते वक्त उसका नाम नहीं बदला गया।
यहीं पर शाहजहां से गलती हो गई। उस काल के किसी भी सरकारी या शाही दस्तावेज एवं अखबार आदि में ‘ताजमहल’ शब्द का उल्लेख नहीं आया है। ताजमहल को ताज-ए-महल समझना हास्यास्पद है।
‘महल’ शब्द मुस्लिम शब्द नहीं है। अरब, ईरान, अफगानिस्तान आदि जगह पर एक भी ऐसी मस्जिद या कब्र नहीं है जिसके बाद महल लगाया गया हो। 

यह भी गलत है कि मुमताज के कारण इसका नाम मुमताज महल पड़ा, क्योंकि उनकी बेगम का नाम था मुमता उल।जमानी।
यदि मुमताज के नाम पर इसका नाम रखा होता तो ताजमहल के आगे से मुम को हटा देने का कोई औचित्य नजर नहीं आता।

विंसेंट स्मिथ अपनी पुस्तक 'Akbar the Great Moghul' में लिखते हैं, बाबर ने सन् 1530 में आगरा के वाटिका वाले महल में अपने उपद्रवी जीवन से मुक्ति पाई।
वाटिका वाला वो महल यही ताजमहल था। यह इतना विशाल और भव्य था कि इसके जितना दूसरा कोई भारत में महल नहीं था। बाबर की पुत्री गुलबदन ‘हुमायूंनामा’ नामक अपने ऐतिहासिक वृत्तांत में ताज का संदर्भ ‘रहस्य महल’ (Mystic House) के नाम से देती है।
ताजमहल का निर्माण राजा परमर्दिदेव के शासनकाल में 1155 अश्विन शुक्ल पंचमी, रविवार को हुआ था। अतः बाद में मुहम्मद गौरी सहित कई मुस्लिम आक्रांताओं ने ताजमहल के द्वार आदि को तोड़कर उसको लूटा। यह महल आज के ताजमहल से कई गुना ज्यादा बड़ा था और इसके तीन गुम्बद हुआ करते थे।
हिन्दुओं ने उसे फिर से मरम्मत करके बनवाया, लेकिन वे ज्यादा समय तक इस महल की रक्षा नहीं कर सके।
          
वास्तुकला के विश्वकर्मा वास्तुशास्त्र नामक प्रसिद्ध ग्रंथ में शिवलिंगों में ‘तेज-लिंग’ का वर्णन आता है।
ताजमहल में ‘तेज-लिंग’ प्रतिष्ठित था इसीलिए उसका नाम ‘तेजोमहालय’ पड़ा था। 

शाहजहां के समय यूरोपीय देशों से आने वाले कई लोगों ने भवन का उल्लेख ‘ताज-ए-महल’ के नाम से किया है, जो कि उसके शिव मंदिर वाले परंपरागत संस्कृत नाम ‘तेजोमहालय’ से मेल खाता है।

इसके विरुद्ध शाहजहां और औरंगजेब ने बड़ी सावधानी के साथ संस्कृत से मेल खाते इस शब्द का कहीं पर भी प्रयोग न करते हुए उसके स्थान पर पवित्र मकबरा शब्द का ही प्रयोग किया है।

ओक के अनुसार अनुसार हुमायूं, अकबर, मुमताज, एतमातुद्दौला और सफदरजंग जैसे सारे शाही और दरबारी लोगों को हिन्दू महलों या मंदिरों में दफनाया गया है।

ताजमहल तेजोमहल शिव मंदिर है - इस बात को स्वीकारना ही होगा कि ताजमहल के पहले से बने ताज के भीतर मुमताज की लाश दफनाई गई!

न कि लाश दफनाने के बाद उसके ऊपर ताज का निर्माण किया गया। ‘ताजमहल’ शिव मंदिर को इंगित करने वाले शब्द ‘तेजोमहालय’ शब्द का अपभ्रंश है। तेजोमहालय मंदिर में अग्रेश्वरमहादेव प्रतिष्ठित थे। देखने वालों ने अवलोकन किया होगा न कि लाश दफनाने के बाद उसके ऊपर ताज का निर्माण किया गया। ‘ताजमहल’ शिव मंदिर को इंगित करने वाले शब्द ‘तेजोमहालय’ शब्द का अपभ्रंश है। तेजोमहालय मंदिर में अग्रेश्वरमहादेव प्रतिष्ठित थे। देखने वालों ने अवलोकन किया होगा कि तहखाने के अंदर कब्र वाले कमरे में केवल सफेद संगमरमर के पत्थर लगे हैं जबकि अटारी व कब्रों वाले कमरे में पुष्प लता आदि से चित्रित चित्रकारी की गई है। 

इससे साफ जाहिर होता है कि मुमताज के मकबरे वाला कमरा ही शिव मंदिर का गर्भगृह है।

संगमरमर की जाली में 108 कलश चित्रित उसके ऊपर 108 कलश आरूढ़ हैं, हिन्दू मंदिर परंपरा में 108 की संख्या को पवित्र माना जाता है।

तेजोमहालय उर्फ ताजमहल को नागनाथेश्वर के नाम से जाना जाता था, क्योंकि उसके जलहरी को नाग के द्वारा लपेटा हुआ जैसा बनाया गया था। यह मंदिर विशालकाय महल क्षेत्र में था। आगरा को प्राचीनकाल में अंगिरा कहते थे, क्योंकि यह ऋषि अंगिरा की तपोभूमि थी। अंगिरा ऋषि भगवान शिव के उपासक थे।

बहुत प्राचीन काल से ही आगरा में 5 शिव मंदिर बने थे। यहां के निवासी सदियों से इन 5 शिव मंदिरों में जाकर दर्शन व पूजन करते थे। 

लेकिन अब कुछ सदियों से बालकेश्वर, पृथ्वीनाथ, कैलाश और राजराजेश्वर नामक केवल 4 ही शिव मंदिर शेष हैं। 5वें शिव मंदिर को सदियों पूर्व कब्र में बदल दिया गया।

स्पष्टतः वह 5वां शिव मंदिर आगरा के इष्टदेव नागराज।अग्रेश्वर।महादेव।नागनाथेश्वर ही हैं, जो कि तेजोमहालय मंदिर उर्फ ताजमहल में प्रतिष्ठित थे।
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